एक अक्षम्य भारी भूल
जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने वाकई इतिहास रच डाला है। जम्मू एवं कश्मीर के किसी अन्य मुख्यमंत्री ने कभी इसका प्रतिवाद नहीं किया कि जम्मू एवं कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है। ऐसा करके उमर ने न केवल भाजपा को चिढ़ाया है अपितु आगे बढ़कर जो कहा है उससे राज्य में अलगाववादी और पाकिस्तान का मीडिया हर्षोन्माद में है।
राज्य विधानसभा में एक ताजा वक्तव्य में, उमर ने कहा: जम्मू एवं कश्मीर राज्य भारत के साथ जुड़ा है; इसका भारत के साथ ‘विलय‘ नहीं हुआ है।
तथ्य यह है कि 500 से ज्यादा रियायतें जिनमें हैदराबाद और जूनागढ़ शामिल है जिनका विशेष रुप से उल्लेख करते हुए उमर ने इसे जम्मू-कश्मीर से भिन्न केस बताया है- ने उसी तरह विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए जैसेकि जम्मू एवं कश्मीर ने किए हैं, और स्वतंत्रता के बाद भारत अखण्ड हिस्सा बने। और पिछले 6 दशकों से ज्यादा समय से न केवल अकेली भाजपा जम्मू एवं कश्मीर को भारतीय क्षेत्र का अभिन्न अंग बताती है अपितु देश के प्रत्येक नेता पंडित नेहरु से लेकर श्रीमती इंदिरा गांधी से वर्तमान विदेश मंत्री श्री एस.एम. कृष्णा भी इसकी पुष्टि करते रहे हैं।
वास्तव में पाकिस्तान के समाचार पत्र ‘डान‘ के 8 अक्टूबर के मुख्य पृष्ठ पर एस.एम. कृष्णा के दावे को विधानसभा में उमर के भाषण के सामने प्रकाशित किया है।
1994 में भारतीय संसद के दोनों सदनों द्वारा जम्मू-कश्मीर पर पारित सर्वसम्मत प्रस्ताव को यहां स्मरण करना समीचीन होगा, जिसमें दृढ़तापूर्वक कहा गया है:
”जम्मू एवं कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग रहा है, और रहेगा तथा शेष भारत से इसे अलग करने के लिए किसी भी प्रयासों का सभी आवश्यक साधनों से प्रतिरोध किया जाएगा।”
यही प्रस्ताव आगे कहता है:
”पाकिस्तान को भारत राज्य के जम्मू एवं कश्मीर का क्षेत्र खाली करना चाहिए जिसे उसने बलात हथिया रखा है।”
अभी तक उमर अब्दुल्ला के त्यागपत्र की मांग इस आधार पर की जा रही थी कि वह पत्थर फेंकने वाली भीड़ द्वारा घाटी में पैदा किए गए हालात से निपटने में असफल रहे हैं। कुछ तत्व इसे उनकी प्रशासनिक अनुभवहीनता मानते थे। परन्तु उनके ताजे बयान से साफ होता है कि यह उनकी मात्र प्रशासनिक अनुभवहीनता नहीं है अपितु जहां तक जम्मू एवं कश्मीर का सम्बन्ध है, वह राष्ट्रीय मूड से पूरी तरह अलग है। इसलिए जितना जल्दी वे त्यागपत्र दे दें तो उतना ही जम्मू एवं कश्मीर और राष्ट्र के लिए अच्छा होगा।
विधानसभा के अपने भाषण में उमर अब्दुल्ला ने धारा 370 को समाप्त करने की भाजपा की मांग का आलोचनात्मक संदर्भ दिया। डा. श्यामा प्रसाद मुकर्जी के दिनों से हम एक प्रधान] एक निशान और एक विधान के लिए कटिबध्द रहे हैं।
डा. मुकर्जी द्वारा शुरु किए गए कश्मीर आंदोलन और बंदी अवस्था में उनकी मृत्यु से पहले दो लक्ष्य-एक प्रधान और एक निशान तो हासिल हो गए। तीसरा लक्ष्य एक संविधान-हासिल होना शेष है। और हम उसे हासिल करने के लिए कृतसंकल्प हैं।
बहुतों को यह नहीं पता होगा कि धारा 370 के कारण जम्मू एवं कश्मीर राज्य के पृथक संविधान की धारा 3 इस तरह है:
राज्य का भारत संघ के साथ सम्बन्ध- जम्मू एवं कश्मीर भारत संघ का अभिन्न अंग है और रहेगा।
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.एस. आनन्द ने अपनी पुस्तक द कांस्टीटयूशन ऑफ जम्मू एण्ड कश्मीर में उपरोक्त भाग पर निम्न टिप्पणी की है।
1951 में राज्य संविधान सभा आहूत की गई थी ताकि वह ”राज्य के जुड़ने के सम्बन्ध में अपने तर्कसंगत निष्कर्ष” दे सके। संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर सम्बन्धी विवाद पर ठहराव आ चुका था। राज्य के भविष्य के बारे में अनिश्चितता समाप्त करने के उद्देश्य से कश्मीर में असेम्बली ने पर्याप्त विचार-विमर्श के बाद 1954 में राज्य के भारत में विलय की पुष्टि की।
1956 में, जब राज्य संविधान की ड्राफ्टिग को अंतिम रुप दिया जा रहा था, तक राज्य संविधान में राज्य के विलय को एक ‘स्थायी प्रावधान‘ मानने के सम्बन्ध में राज्य की अंतत: स्थिति को शामिल करना जरुरी समझा गया। यही वह विचार था जो संविधान के भाग 3 के रुप में अपनाया गया।
इस भाग में शब्द प्रयोग में लाए गए ”हैं-और रहेगा” । इससे साफ होता है कि राज्य के लोगों के मन में भारत के साथ जुड़ने के बारे में कभी कोई शक नहीं था। यह भाग मात्र उनकी इच्छा कि ”भारत संघ के अभिन्न अंग” बने रहने की पुष्टि भर है।
तब क्यों, मि. उमर, आप भाजपा के यह कहने पर नाराज होते हो?
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पिछले सप्ताह समाचार पत्रों की यह दो सुर्खियां थी :
”राजा इगर्नोड पीएम, लॉ मिनिस्ट्रीज एडवाइस आन 2जी स्पेक्ट्रम, सेस सीएजी”
(राजा ने 2 जी स्पेक्ट्रम पर प्रधानमंत्री, विधि मंत्रालय के परामर्श की उपेक्षा की, सीएजी का कहना है)
”नथिंग मूव्स विदआउट मनी, सेस एक्सपर्ट”
(बगैर पैसे के कुछ भी नहीं हिलता, विशेषज्ञो का कहना है)
दोनों सुर्खियों भ्रष्टाचार सम्बन्धी समाचारों से जुड़ी हैं-पहली में एक केंद्रीय मंत्री शामिल है, और दूसरी केंद्र सरकार में व्याप्त भयंकर भ्रष्टाचार पर सर्वो
च्च न्यायालय द्वारा की गई कड़ी निंदा का सार है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने बताया कि ए. राजा की टेलीकॉम मिनिस्ट्री ने 2008 में समूचे स्पेक्ट्रम आवंटन में विधि मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और यहां तक कि प्रधानमंत्री की सलाह को नजर अंदाज करते हुए ”मनमाने ढंग” से काम किया।
सी.ए.जी. के अनुमान से इस मनमाने दृष्टिकोण से देश को 1.40 लाख करोड़ रुपए की विशाल धनराशि का नुक्सान उठाना पड़ा है! सी.ए.जी. के अनुमान से यह स्पेक्ट्रम घोटाला आजादी के बाद से सर्वाधिक बड़ा घोटाला बनता है।
सी.ए.जी. रिपोर्ट कहती है:
”टेलीकॉम मंत्रालय ने स्पष्ट और तार्किक या मान्य कारणों के बिना वित्त और विधि मंत्रालय की सलाह को उपेक्षित किया, 2जी स्पेक्ट्रम जैसी दुर्लभ परिमित राष्ट्रीय सम्पदा को आवंटित करने हेतु टेलीकॉम आयोग के विचार-विमर्श को नकारा।”
”स्पेक्ट्रम की कमी और वाजिब से कम दाम के बारे में सभी एजेंसियों की जानकारी के बावजूद, लाइसेंस जारी करने का प्रवेश शुल्क 2001 में निर्धारित की गई दरों से बंधा हुआ रखा गया।”
सीएजी ने टेलीकॉम मंत्रालय के इस तर्क को खारिज कर दिया कि स्पेक्ट्रम आवंटन पिछली सरकार द्वारा निर्धारित की गई नीति के अनुसार ही किया गया है। सीएजी कहता है कि ”यह दावा गलत है कि पूर्ववर्ती सरकार की नीति का पालन किया गया। सन् 2003 में केबिनेट ने भविष्य में सभी आवंटनों को सीधे नीलामी से करने का निर्देश दिया था।”
जहां तक दूसरे समाचार का संबंध है उसमें पहले जैसे की भांति किसी बड़े राजनीतिज्ञ के शामिल होने का मामला नहीं है, लेकिन फिर भी यह एक मध्यवर्ती सरकारी अधिकारी से सम्बन्धित है, सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियां दर्शाती हैं कि बार-बार भ्रष्टाचार के केसों के मामले में देश का सर्वोच्च न्यायालय कैसे क्रोधित और उत्तेजित है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्केण्डय काटजू और टी.एस. ठाकुर की पीठ कहती है:
”यहां अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में भ्रष्टाचार पर कोई नियंत्रण नहीं है। विशेष रुप से आयकर, बिक्री कर और आबकारी विभागों में भ्रष्टाचार काबू से बाहर है। बगैर पैसे के कुछ भी नहीं हिलता।”
स्पष्ट कटाक्ष करते हुए पीठ ने आगे कहा: ”क्यों नहीं सरकार भ्रष्टाचार को वैध बना देती जिससे प्रत्येक केस के लिए एक विशेष राशि निर्धारित हो जाएगी। मान लीजिए यदि एक व्यक्ति अपने मामले को सुलझाना चाहता है तो उसे 2,500 रुपए भुगतान करने को कहा जाए।” उससे प्रत्येक व्यक्ति को पता चल सकेगा कि उसे कितनी रिश्वत देनी है।
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यह अत्यंत संतोषजनक है कि नई दिल्ली में राष्ट्रमण्डल खेलों की समांप्ति के बाद ही प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने खेलों से जुड़े भ्रष्टाचार और विभिन्न कुप्रबन्धन के आरोपों की जांच की घोषणा की है।
देश को आशा है कि आद्योपांत जांच होगी और गलत काम करने वाला कोई भी बख्शा नहीं जाएगा। और केवल बलि का बकरा ढूढने की खोज नहीं होगी।
देश के भीतर के प्रेक्षकों को भारतीय खिलाड़ियों द्वारा बड़ी मात्रा में पदक जीतने, और उद्धाटन तथा समापन के अवसर पर भव्य कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन से, महीनों से नकारात्मक प्रचार पा रहे राष्ट्रमण्डल खेलों के लिए कुछ हद तक क्षतिपूर्ति करने वाली हैं। लेकिन भारत के बाहर रहने वाले भारतीयों की बात मानी जाए तो विदेशों में इसका प्रचार नकारात्मक ही रहा है।
हालांकि, यह एक सुखद संयोग है कि राष्ट्रमण्डल खेलों के अंतिम दिन ने भारत को आस्ट्रेलिया के बाद दूसरे स्थान पर स्थापित किया है, इसके साथ-साथ क्रिकेट में भारत को तीन विजय मिलीं: (1) 2 मैच वाली श्रृंखला में आस्ट्रेलिया के ऊपर विजय, (2) दुनिया की क्रिकेट टीमों में भारत का पहले स्थान पर पहुंचना और (3) सचिन तेदुंलकर का लाजवाब प्रदर्शन। सभी खेलप्रेमियों को स्वाभाविक रुप से उस दिन गर्व महसूस हुआ होगा।
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rajendraadvbjp@gmail.comAN UNPARDONABLE GAFFE
Omar Abdullah, Chief Minister of J&K State has indeed made history. No other Chief Minister of Jammu and Kashmir has ever taken exception to anyone saying that J&K State is an integral part of India. Omar has not only chided the BJP for doing so but has gone further to make an assertion over which both the separatists in the State as well as the Pakistani media have gone into raptures.
In a recent statement in the State Assembly, Omar has said: Jammu and Kashmir State has acceded to India; it has not merged with India.
Fact is that all the over 500 princely states, including Hyderabad and Junagarh which Omar specifically mentioned as being different from Jammu & Kashmir, have become integral parts of India after independence and had signed the same Instrument of Accession that Jammu and Kashmir signed. And over the last six decades, it is not the BJP alone that has described Jammu and Kashmir as an integral part of Indian territory but every single leader of the country from Pandit Nehru to Smt. Indira Gandhi to our present External Affairs Minister, Shri S.M. Krishna who have affirmed this.
In fact, Pakistan’s DAWN of Oct. 8 front paged S.M. Krishna’s assertion by pitting it against Omar’s speech in the Assembly.
It would be in place to recall that the unanimous resolution on J& K adopted by both the Houses of the Indian Parliament way back in 1994 has affirmed:
“The state of Jammu and Kashmir has been, is and shall be an integral part of India and any attempts to separate it from the rest of the country will be resisted by all necessary means”.
It is this same resolution which goes on to state :
“Pakistan must vacate the area of the Indian State of Jammu and Kashmir, which they have occupied by aggression”.
The demand for Omar Abdullah’s resignation that was being made till recently was on the ground that he had totally failed to deal with the situation in the valley created by stone-pelting mobs. There were elements willing to attribute it to his administrative inexperience. But this latest speech of his reveals that he is not just an administrative failure, but that in so far as J & K is concerned, he is totally out of tune with the national mood. The earlier he quits the better it would be for Jammu and Kashmir as well as for the nation.
In his Assembly speech, Omar Abdullah also referred critically to BJP’s demand for repeal of Art. 370. Since the days of Dr. S.P. Mookerji, we have been committed to Ek Pradhan, Ek Nishan and Ek Vidhan (One President, One Flag, and One Constitution).
The Kashmir movement launched by Dr. Mookerji and his death in detention accomplished the first two objectives, namely One President and One Flag. The third objective, One Constitution, is still to be achieved. And we are determined to achieve it.
But not many may be aware that even in the separate Constitution that J&K State has by virtue of Art. 370, Sec. 3 reads as follows :
Relationship of the State with the Union of India–The State of Jammu and Kashmir is and shall be an integral part of the Union of India
In his book, The Constitution of Jammu and Kashmir, former Chief Justice of India Justice A.S. Anand has commented on the above section :
In 1951 the State Constituent Assembly was convened to give “its reasoned conclusions regarding accession”. The dispute regarding Kashmir had come to a standstill at the U.N.O. The Assembly in Kashmir, in order to end the uncertainty about the future of the State, after due consideration, ratified the State’s accession to India in 1954.
In 1956, when the drafting of the State Constitution was being finalized, it was deemed necessary to incorporate the ultimate position of the State in respect of the sphere of its accession as a “permanent provision” in the State Constitution. It was with this idea that section 3 of the Constitution was adopted.
The words used in this section are “is and shall be”. These leave no ground for thinking that the people of the State ever had a doubt about their affiliations with India. The section is merely the affirmation of their desire to be “integral part of the Union of India”.
Why then, Mr. Omar, are you upset that BJP says this ?
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Two headlines of last week’s dailies read as follows :
“RAJA IGNORED PM, LAW MINISTRY’S ADVICE
ON 2G SPECTRUM, SAYS CAG “
“NOTHING MOVES WITH0UT MONEY, SAYS APEX COURT”
Both these above headlines relate to news reports about corruption – the first involving a Union Minister, and the second summing up the Supreme Court’s severe strictures about the horrible corruption prevalent in the Central Government.
The Comptroller and Auditor General has reported that A. Raja’s Telecom Ministry carried out the entire spectrum allocation in 2008 in an “arbitrary manner” ignoring the advice of the Law Ministry, the Finance Ministry and even the Prime Minister.
The C.A.G. has assessed the loss suffered by the country of this arbitrary approach at a stupendous Rs.1.40 lakh crores! This C.A.G. assessment may well make this spectrum scam the biggest scandal since independence.
The C.A.G. Report says:
“The Telecom Ministry for no apparent and logical or valid reasons ignored the advice of ministries of finance and law, avoided the deliberations of the Telecom Commission to allocate 2G spectrum, a scarce finite national asset”, says the report.
“Despite all agencies having knowledge of scarcity and underpricing of spectrum, the entry fee for issue of licences continued to be pegged at the rates determined in 2001,” it says.
CAG has rejected telecom ministry’s argument that spectrum allocation was done in accordance with the policy laid down by the previous government. “The claim that policy of predecessors was followed is wrong. The Cabinet in 2003 had directed auction for all allotments in future,” the CAG said.
So for as the second news item is concerned it does not involve any top ranking politician as does the first one. But even though it relates to a middle ranking governmental official, the Supreme Court’s comments reflect how angry and exasperated even the country’s highest court feels when it repeatedly runs into corruption cases.
The S.C. Bench comprising of Justices Markandeya Katju and T.S. Thakar said: “It is very unfortunate that there is no control over corruption in the country. There is rampant corruption particularly in the departments of Income Tax, Sales Tax and Excise. Nothing moves without money.”
With unconcealed sarcasm, the Bench added: “Why not government legalise corruption so that a specific amount is fixed for every case. Let us say if a man wants his case to be settled, he can be asked to pay Rs.2,500.” That way every individual will know how much bribe he has to pay.
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It is highly gratifying that immediately after the conclusion of the Commonwealth Games in New Delhi Prime Minister Dr. Manmohan Singh has announced that the allegations of corruption and financial mismanagement in connection with the games would be probed.
The country hopes that the probe would be thorough, and that no wrong doer would be spared. And there would be no search just for scapegoats.
For observers within the country, the rich haul of medals by Indian sportspersons, and the successful execution of the spectacular functions on the opening and closing days may have somewhat compensated for the months long negative publicity the CWG had been receiving before the games began. But judging by what Indians living abroad have had to tell, the sum total of the publicity overseas has been very negative.
However, it was a very happy coincidence that the final day of the Commonwealth Games placing India at Rank 2 after Australia came simultaneously with the three fold triumph of India in Cricket :(1) Victory over Australia in the 2-test series, (2) ranking of India as number one among the cricketing teams of the world and (3) Sachin Tendulkar’s peerless performance. All sports lovers naturally felt great that day.
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